बजरंग बाण (Bajrang Baan) के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। यह पाठ हनुमान जी को समर्पित है। हम इसका प्रयोग एक बाण की तरह कर सकते हैं। इस दिव्य बाण का प्रयोग हम शारीरिक रोग, संकट, भूत-प्रेत बाधा निवारण, युद्ध विजय या किसी व्यक्ति विशेष (दुश्मन) पर भी कर सकते हैं। बजरंग बाण में भी तुलसीदास ने कहा है, ‘यहि बजरंग बाण जेहिं मारो। ताहि करो फिर कौन उबारो॥’ इसका अर्थ है, जिस पर भी इस दिव्य बाण का प्रयोग किया जाता है, वह निश्चित रूप से नाश को प्राप्त होता है।
श्री बजरंग बाण (Shri Bajrang Baan Lyrics in Hindi)
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाइ लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय-जय धुनि सुर पुर मँह भई॥
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी॥
जय-जय लक्ष्मण प्राणके दाता। आतुर होइ दुःख करहु निपाता॥
जय गिरधर जय-जय सुख सागर। सूर-समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारु बज्र के कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुँकार महावीर धावो। बज्रगदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के॥
जय-जय-जय हनुमन्त अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप-तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा॥
वन-उपवन मग गिरी गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हैं मारु तोहिं शपथ रामकी। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरिदास कहावो। ताकी शपथ बिलम्ब न लाबो॥
जय-जय-जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुखनाशा॥
शरण-शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खलदल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहिं मारो। ताहि करो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब काँपै॥
धूप देय अरु जपे हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजे, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
॥ इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमत्-बजरंग बाण समाप्त ॥
ध्यान दें- बजरंग बाण को सिद्ध करने के बाद ही आप इसका प्रयोग एक दिव्यास्त्र की तरह कर सकते हैं। सिद्धि के बिना यह एक साधारण बाण है। साधारण तरह से बजरंग बाण का पाठ करने से आपको हनुमान जी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी परन्तु आप इसका पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाएंगे।
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