
रचयिता | विश्वामित्र |
भाषा | संस्कृत |
मंत्र | भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। |
गायत्री मंत्र क्या है?
गायत्री मंत्र वेदों का सबसे पवित्र और प्रभावशाली महामंत्र है। यह मंत्र सावित्र देव (सविता या सूर्य देव) को समर्पित है, इसलिए गायत्री मंत्र को सावित्री मंत्र भी कहा जाता है। गायत्री मंत्र ‘भूर्भुवः स्वः’ और ऋग्वेद के मंडल 3.62.10 के मेल से बना है, जो इसे दुनिया के सबसे पुराने और पवित्र मंत्रों में से एक बनाता है।
गायत्री मंत्र 32 अक्षरों का है और इसे विशेष रूप से संध्यावंदन (प्रात: काल, मध्याह्न और संध्याकाल की पूजा) के दौरान उच्चारित किया जाता है। इसे आमतौर पर प्रबोधन और आत्मिक उन्नति के लिए पाठ किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।
‘गायत्री’ न केवल एक अत्यंत पवित्र मंत्र है, बल्कि यह एक विशेष छंद भी है, जो 24 मात्राओं (8 + 8 + 8) के संयोजन से बना है। गायत्री, ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में से एक है, जो वैदिक साहित्य में अपनी महत्ता और संरचना के लिए विख्यात है। इन सात छंदों के नाम हैं – गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप्, और जगती।
गायत्री छंद की विशेषता इसकी संरचना में निहित है, जिसमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण (पद) होते हैं। इसीलिए इसे ‘त्रिपदा वै गायत्री’ कहा गया है। ऋग्वेद के मंत्रों में, त्रिष्टुप् छंद के बाद सबसे अधिक संख्या में मंत्र गायत्री छंद में रचे गए हैं।
सृष्टि के प्रतीक के रूप में जब छंदों या वाक को देखा जाने लगा, तो इस सम्पूर्ण विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। इसका तात्पर्य यह है कि गायत्री छंद केवल एक काव्यात्मक संरचना नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय रचना और वैदिक दर्शन का प्रतीक भी है।
संस्कृत में गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो योनः प्रचोदयात्।
वास्तव में गायत्री मंत्र ‘भूर्भुवः’ से प्रारम्भ होकर ‘प्रचोदयात्’ तक ही है। परन्तु प्रणव (ॐ) के बिना मंत्र अधूरा माना जाता है इसीलिए मंत्रों को पूर्ण करने के लिए उनमें प्रणव का उपयोग किया जाता है।
गायत्री मंत्र का अर्थ
- ॐ भूर्भुवः स्वः
- ॐ – यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो अनंत और दिव्य को दर्शाता है।
- भूर – पृथ्वी का तल या भौतिक लोक।
- भुवः – मानसिक लोक या वातावरण।
- स्वः – स्वर्गीय लोक या आध्यात्मिक क्षेत्र।
- अर्थ – “हम उस दिव्य ऊर्जा का ध्यान करते हैं, जो पृथ्वी, वातावरण और स्वर्ग के तीनों लोकों में व्याप्त है।”
- तत्सवितुर्वरेण्यम्
- तत् – वह (दिव्य, सविता)
- सवितुर – सविता, सूर्य देव, जो प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत हैं।
- वरेण्यम् – योग्य, सम्माननीय, पूज्य।
- अर्थ – “हम सूर्य देव के दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो सर्वश्रेष्ठ और पूजा योग्य है।”
- भर्गो देवस्य धीमहि
- भर्गो – दिव्य प्रकाश या दिव्य तेज।
- देवस्य – देवता का (सविता)।
- धीमहि – हम ध्यान करते हैं।
- अर्थ – “हम सूर्य देव के उस दिव्य प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो हमारे मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण में सहायक हो।”
- धियो योनः प्रचोदयात्
- धियो – बुद्धि या मानसिक क्षमता।
- योनः – स्रोत या दिशा।
- प्रचोदयात् – प्रेरित करें या मार्गदर्शन करें।
- अर्थ – “यह दिव्य प्रकाश हमारी बुद्धि को सही दिशा में प्रेरित करे और हमें सत्य और ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करें।”
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