हनुमान साठिका की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। प्रतिदिन हनुमान साठिका के पाठ से पाठक संकटमुक्त होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंगलवार का पाठ तो विशेष सिद्धिप्रद है।
हनुमान साठिका (Hanuman Sathika Path)
चौपाई
जय जय जय हनुमान अडंगी।
महाबीर विक्रमबजरंगी॥१॥
जय कपीश जय पवनकुमारा।
जय जगबन्दन शील अगारा॥२॥
जय आदित्य अमर अविकारी।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी॥३॥
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा।
जय-जयकार देवतन कीन्हा॥४॥
बाजै दुन्दुभि गगन गभीरा।
सुर मन हर्ष असुर मनपीरा॥५॥
कपि के डर गढ़ लंक सकानी।
छूटी बन्दि देवतन जानी॥६॥
ऋषि-समूह निकट चलि आये।
पवन-तनय के पद सिर नाये॥७॥
बार-बार अस्तुति कर नाना।
निर्मल नाम धरा हनुमाना॥८॥
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना।
दीन बताय लाल फल खाना॥९॥
सुनत बचन कपि मन हर्षाना।
रविरथ उदय लाल फल जाना॥१०॥
रथ समेत कपि कीन अहारा।
सूर्य बिना भये अति अँधियारा॥११॥
विनय तुम्हार करै अकुलाना।
तब कपीश की अस्तुति ठाना॥१२॥
सकल लोक वृत्तान्त सुनावा।
चतुरानन तब रवि उगिलावा॥१३॥
कहा बहोरि सुनो बलशीला।
रामचंद्र करि हैं बहुलीला॥१४॥
तब तुम उन कर करब सहाई।
अबहीं बसहु कानन में जाई॥१५॥
अस कहि विधि निजोलोक सिधारा।
मिले सखा सग पवनकुमारा॥१६॥
खेलैं खेल महा तरु तोरैं।
ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं॥१७॥
जेहि गिरिचरण देहि कपि धाई।
गिरि समेत पातालहिं जाई॥१८॥
कपि सुग्रीव बालि को त्रासा।
निरख रहे राम मगु आसा॥१९॥
मिले राम तहँ पवन कुमारा।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा॥२०॥
मणि मुँदरी रघुपति सों पाई।
सीता खोज चले सिर नाई॥२१॥
शत योजन जलनिधि विस्तारा।
अगम अपार देवतन हारा॥२२॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपिशा।
लाँघि गये कपि कहि जगदीशा॥२३॥
सीता चरण सीस तिन नाये।
अजर अमर के आशिष पाये॥२४॥
रहे दनुज उपवन रखवारी।
एक से एक महाभट भारी॥२५॥
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीशा।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा॥२६॥
सिया बोध दै पुनि फिर आये।
रामचंद्र के पद सिर नाये॥२७॥
मेरु उपारि आपु छिन माहीं।
बाँधे सेतु निमिष इक माहीं॥२८॥
लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं॥२९॥
भवन समेत सुखेण लै आये।
तुरत सजीवन को पुनि धाये॥३०॥
मग महँ कालनेमि कह मारा।
अमित सुभट निशिचर संहारा॥३१॥
आनि सजीवन गिरि समेता।
धरि दीन्हों जहँ कृपा निकेता॥३२॥
फनपति केर शोक हरि लीना।
वषि सुमन सुर जय-जय कीना॥३३॥
महिरावण हरि अनुज समेता।
लै गयो तहाँ पाताल निकेता॥३४॥
जहाँ रहे देवी अस्थाना।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना॥३५॥
पवन-तनय प्रभु कीन गुहारी।
कटक समेत निशाचर मारी॥३६॥
रीच्छ कीशपति सबै बहोरी।
राम लषन कीने यक ठोरी॥३७॥
सब देवतन की बंदि छुड़ाये।
सो कीरति मुनि नारद गाये॥३८॥
अक्षय कुमार दनुज बलवाना।
सानकेतु कहँ सब जग जाना॥३९॥
कुम्भकरण रावण कर भाई।
ताहि निपात कीन्ह कपि राई॥४०॥
मेघनाद पर शक्ती मारा।
पवन-तनय तब सों बरियारा॥४१॥
रहा तनय नारान्तक जाना।
पल महँ ताहि हते हनुमाना॥४२॥
जहँ लगि मान दनुज कर पावा।
पवन-तनय सब मारि नसावा॥४३॥
जय मारुत-सुत जय अनुकूला।
नाम कृसानु शोक सम तूला॥४४॥
जहँ जीवन पर संकट होई।
रवि तम सम सो संकट खोई॥४५॥
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना।
संकट कटै धरै जो ध्याना॥४६॥
जाकी बाँध बाम पद दीन्हा।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा॥४७॥
सो भुजबल का कीन कृपाला।
आछत तुम्हें मोर यह हाला॥४८॥
आरत हरन नाम हनुमाना।
सादर सुरपति कीन बखाना॥४९॥
संकट रहै न एक रती को।
ध्यान धरे हनुमान जती को॥५०॥
धावहु देखि दीनता मोरी।
कहौं पवनसुत युग कर जोरी॥५१॥
कपिपति बेगि अनुग्रह करहू।
आतुर आइ दुसह दुख हरहू॥५२॥
राम शपथ मैं तुमहिं सुनाया।
जवन गुहार लाग सिय जाया॥५३॥
पैज तुम्हार सकल जग जाना।
भव-बन्धन भंजन हनुमाना॥५४॥
यह बन्धन कर केतिक बाता।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता॥५५॥
करौ कृपा जय-जय जगस्वामी।
बार अनेक नमामि नमामी॥५६॥
भौमवार कर होम विधना।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना॥५७॥
मंगल दायक को लौ लावै।
सुर नर मुनि वांछित फल पावै॥५८॥
जयति जयति जय-जय जग स्वामी।
समरथ पुरुष सुअन्तर जामी॥५९॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना।
सो तुलसी के प्राण समाना॥६०॥
दोहा
जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।
राम लखन सीता सहित, सदा करो कल्यान॥१॥
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्यान॥२॥
जो नित पढ़ै यह साठिका तुलसी कहैं विचार।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि॥३॥
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