हनुमान लहरी में हनुमान जी की पूरी जीवन गाथा का संक्षिप्त में विवरण है। इसके माध्यम से भक्त हनुमान जी से अपने कष्टों को दूर करने की विनती करते हैं, ताकि उनकी कृपा से हमारी कठिनाइयाँ दूर हो सकें और जीवन में सुख-शांति का आगमन हो सके।
हनुमान लहरी (Hanuman Lahari Lyrics)
दोहा
गुरुपदपंकज धारि उर, सुर नर शीश नवाय।
मारुतसुत बरबीर कहँ, ध्यावत चितमन लाय॥
प्रथम बन्दि सियरामपद, अवधनारि नर संग।
बन्दौं चरण सुध्यान धरि, हनुमत कंचन रंग॥
मन चित देइ सुनो विनै, हौं तुम दीन दयाल।
और नहीं कछु वासना, दासहि करहु निहाल॥
तात बड़ाई रावरी, बिछुवत जोति अमन्द।
सब विधि हीन मलीन मति, अहै दीन ब्रजनन्द॥
जानै जग दातव्यता, नाथ मोर सरवस्व।
पै बिरलै कोउ जानि हैं, यह अति गूढ़ रहस्य॥
जै जयदारुण दुखदलन, महावीर रणधीर।
कर गहि लेउ उबार ब्रज, आय जुरी अति भीर॥
गद-गद गिरा गुमान तजि, जुगल पानि ब्रज जोर।
हनुमत अस्तुति करत है, सिगरी भाँति निहोर॥
छप्पै छन्द
जै सुत पवन दयानिधान दारिद दुखभंजन।
जैति अंजनी – तनय सदा संतन मनरंजन॥
जैति वीर – सिरताज लाज राखउ मम आजू।
जै-जै रघुवरदास जासु साजेब शुभ काजू॥
प्रभु जस अरि बन्धुसु ईस कहँ कियो पार दुख सिन्धुसों।
व्रज तस मेरो दुख दूर करि होउ सहाय सुबन्धुसों॥
रोला छन्द
जैति जैति दुखहरन सरन अब मोको दीजै।
जैति जैति हनुमन्त अन्त थारो न पईजै॥
जै अंजनिसुत वीर धीर अति धरम धुरन्धर।
जय-जय रघुकुल कुमुद चेर जय मच्छक रविकर॥
जय मारुत सुत तेजवान दुखदुन्द दलैया।
जय सीता सुख मूल तूल सम लंक जलैया॥
रघुवर कर सब काज लाल तुव आप सँवारो।
रुचिर वाटिका दशकन्धर कर नाथ उजारो॥
वानर दल कहँ विजय तात तुम आप दिवायो।
लंका कहँ सन्धान करी सीता सुधि पायो॥
सुग्रीवहिं पहँ राम आनि शुभ सखा बनायो।
लाय विभीषण नाथ निकट तुम अभय करायो॥
सागर उतरेउ पार मेल मुद्रिका मुख माहीं।
सुन शुभमय संवाद करै अचरज कोउ नाहीं॥
लाय सजीवनि भूरि लखन कहँ जीवित दीनो।
शोक-जलधि सो आप काढ़ि रघुवर कहँ लीनो॥
रघुपति सादर सखा भाषि उर लावत भयऊ।
सकलशोक तत्काल हृदय सों बाहर गयऊ॥
श्रीमुख रौरे विशद गुणन को भाष्यो स्वामी।
भरत बाहु बल होय तोहि कह अन्तरयामी॥
भाखि सुखद संवाद तात भय भरत नसायो।
हरषि सुजस ततकाल अवध नारी नर गायो॥
रघुपति कर कछु काज तात तुम बिन नहिं सरितो।
सुरपुर मो जय जैति शब्द तुव बिन को भरितो॥
दोहा
देइ बड़ाई बानरन, असुरन को बध कीन।
तो सम को प्रिय सीय की, जासु शोक हर लीन॥
छन्द
जै-जै शंकर सुजन जैति जै केशरीनन्दन।
जै-जै पवन कुमार ज्यति रघुबर पद बन्दन॥
जय-जय जनक कुमारि प्यारि यह रघुपति पायक।
जैति-जैति जै जैति तात सुर साधु सहायक॥
सकल द्वारसों हार हाय तुव द्वारही आयउँ।
दान शीलता देखि रावरी हिय सुख पायउँ॥
यादर सो महरूम तात अब कहाँ सिधारूँ।
विपत काल में अहो नाथ अब काहि पुकारूँ॥
कर गहि लेउ उबार नाथ हम दास तिहारो।
कर गहि लेउ उबार नाथ कछु है न सहारो॥
कर गहि लेउ उबार नाथ निज ओर निहारी।
कर गहि लेउ उबार नाथ सिगरी विधि हारी॥
कहि कर अजउँ उबारु नाथ भवसिन्धु अथा है।
कहि कर अजउँ उबारु नाथ व्रज डूबन चाहै॥
द्रवहु-द्रवहु यहि काल नाथ मोको कोउ नाहीं।
द्रवहु-द्रवहु यहि काल नाथ हार आयउँ तुव पाहीं॥
द्रवहु-द्रवहु हनुमत कीस दल के सिरताजू।
द्रवहु-द्रवहु कपिराज ताज तुम संत समाजू॥
विनवत हौं कर जोर अजौं टारहु मम संकट।
विनवत हौं कर जोर नाथ काटहु मम कंटक॥
विनवत हौं हे नाथ दया को रन ते हेरहू।
विनवत हौं हे नाथ इहाँ दारुण दुख टेरहू॥
पद गहि विनवौं नाथ तोहि कहँ कस नहीं भावै।
पद गहि विनवौं हाय नाथ तुव दया न आवै॥
पद गहि विनवौं हाय अजहुँ मो अभय करीजै।
पद गहि विनवौं हाय अजहूँ सुख सम्पति दीजै॥
दोहा
सुख सागर आनन्द घन, सन्तन के सिर मौर।
दुख-वन-पावक नाथ तुम, सिर पर सोहत खौर॥
रोला छन्द
आज जुरयो यहि काल महिपै दारुण सोको।
सूझत ना तिहुँ लोक माह तोसो कोउ मोको॥
स्वारथ हित सब जगत माँझ राखत है प्रीती।
पै रौरी हे नाथ हाय अहै अति नूठी रीती॥
हाय-हाय हे नाथ हाय अब मों न बिसारहु।
हाय-हाय हे नाथ हाय अब कोप निवारहु॥
धन बल विद्या हाय कछू नहिं मों ढिंग साई।
कवन सम्पदा कवन तात कब तो बिन पाई॥
दीन हीन सब भाँति हूजिये वेग सहायक।
फेरिये कृपा-कटाक्ष आप सब विधि सब लायक॥
सुखद कथा तुव हाय नाथ कस दीन सुभाखै।
सदा सुचरन पाहिं चित्त आपन कस राखै॥
काम क्रोध मद लोभ मोह मोहिं सदा सतावै।
चित्त वित्तसो हीन दीन कस तो कहँ पावै॥
अजहूँ होय सहाय मोर सब काज संवारहुँ।
गयउँ सकल विधि हारि हाय अब मोहिं संभारहुँ॥
सदा कहत सब लोग आप कहँ संकट मोचन।
सदा कहत सब लोग आप दारुन दुख मोचन॥
अपनहिं ओर निहारि नाथ मों कहँ जनि हेरहु।
आय जुरेउ दुख विकट ताहि कहें तुरतहिं टेरहु॥
और कहौ कत नाथ तोहिं कह बहुत बुझाई।
और कहौ कत हाथ मोहिं सों कहि नहिं जाई॥
सदन गुनन के खान दीन हित जन-सुखदायक।
ब्रजनन्दन दुख देख अजहुँ प्रभु होहु सहायक॥
सोरठा छन्द
अजहुँ होय सहाय, तात निवारो दुख सब।
कहा कहो समुझाय, अजहुँ न बिगरेउ काज कछु॥
हरिगीतिका छन्द
बहु भाँति विनय बहोरि हे प्रभु जोरि कर भाखत अहौं।
तुव चरण रत मम मन रहे कछु और वर जासों लहौं॥
रघुवीर पायन पदुम पावन भृंग मोहिं बनाइये।
भव-सिन्धु अगम अगाध सो ब्रज बाद अजहुँ लगाइये॥
तुम तजि कहों कासों विपत्ति अब नाथ करो मेरी सुनै।
रावरि भरोस सुवास तजि व्रज और को कछु ना गुनै॥
वैरी समाज विनाश करि हनुमान मोहि विजयी करौ।
मेरी ढिठाई दोष अवगुन पै न चित सांई धरौ॥
जब लगि सकल न गुमान तजि नर आइ राउर पद गहै।
तब लगि दवानल पाप को बहु भाँति तन मनही दहै॥
जब लगि न रावरि होय नर सब भाँति मन क्रम वचन ते।
तब लगि न रघुवर दास होत करोर जोखिम यतन ते॥
यदि मान जिय परमान निहचै सरन राउर व्रज गहै।
परलोक लोक भरोस तजि नित नाथ का दरशन चहै॥
हम अपनि ओर निहोर बहु विधि नाथ नित विनती करौं।
हरषाय सादर नाथ तुव गुनगाथ निज हियरा धरौं॥
जनि करहु मोहि अनाथनाथ सुदास है ब्रज रावरो।
हनुमान हैं शुचि पतित पावन दास जोपै पाँवरो॥
अबहूँ करो न सनाथ नाथ तो जगत मोहि तोहि का कहै।
यह रुचिर पावन स्वामि सेवक नेह नातो क्यों रहै॥
दोहा
विजय चहैं निज काज महँ, हनुमत कहँ सिरनाय।
लखि ब्रज कर अब दुरदसा, द्रवहु अबहुँ तुम धाय॥
सोरठा
हार देत सब काज, नाथ रावरे हाथ महँ।
सजहु सकल शुभ साज, भाजहु जनि अब मोहि तजि॥
पंगु भइ मो बुद्ध, अकथ कथा कस कहि सकौं।
करहु काज मम सिद्ध, और कहा तोसों कहौं॥
सुनै न समुझै रीत, मगन भयो मम प्रेम महँ।
अब न सिखावहु नीत, यासो मोहि न काज कछु॥
नहिं दर छाँड़ब हाय, मारहु या जीवन रखहु।
ब्रजनंदन बिखलाय, भाखत साखी दै सियहिं॥
पाहि पाहि भगवन्त, अब सुधि लीजै दास की।
दीजै दरस तुरन्त, करिय कृतारथ दीन जन॥
माँगत दोउ कर जोरि, अभै दान तुम सन सदा।
बारहिं बार निहोरि, कहत करहु फुर मो वचन॥
जो याको चित्त लाय, करे पाठ शुचि प्रेम सों।
ताकर सकल बलाय, हरहु रहहु दारुण बिपति॥
दोहा
संवत उन्निससै बरस, बीते तीन पचास।
नौमी तिथि सित पाख सुठि, रुचिर सुमाधव मास॥
‘हनुमान लहरी’ रचत, हिय धरि पवनकुमार।
सुजन दया करि दास पै, छमि हैं चूक अपार॥
सोरठा
अखतियार पुर ग्राम, आरा जिला सुहावनो।
‘ब्रजनन्दन’ मम नाम, सुत शिवनंदन सुकवि को॥
‘ब्रजबिहारि’ लघुबंधु, प्रेम नेम लखि जाहिकर।
प्रगट करौं सुखसिन्धु, ‘हनुमान लहरी’ सरल॥
इस तरह से पढ़ें हनुमान लहरी का आखिरी सोरठा
(ग्राम, कस्वा या शहर) ग्राम, (जिला) जिला सुहावनो।
(अपना नाम बोलें) मम नाम, सुत (पिता का नाम) सुकवि को॥
‘ब्रजबिहारि’ लघुबंधु, प्रेम नेम लखि जाहिकर।
प्रगट करौं सुखसिन्धु, ‘हनुमान लहरी’ सरल॥
ध्यान दें: हनुमान लहरी के आखिरी सोरठा में अपना गाँव, कस्वा या शहर के साथ जिला बोलें। और ब्रजनंदन के स्थान पर अपना नाम शिवनंदन के स्थान पर अपने पिता का नाम बोलें।
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