प्राचीन अयोध्या नगरी की भव्यता और विशेषताएँ

प्राचीन अयोध्या, सरयू नदी के किनारे स्थित महाराज मनु ने बसाई गई एक सुंदर और समृद्ध नगरी थी। यह 12 योजन में फैली हुई थी, जहां भव्य सड़कें, किले, उद्यान और रत्नजटित महल थे। यहां धर्मात्मा, विद्वान और शक्तिशाली योद्धा रहते थे।

प्राचीन अयोध्या का भव्य चित्रण, राजा दशरथ के शासनकाल का दृश्य, जिसमें सुनहरे गुम्बदों वाले भव्य महल, सुंदर नक्काशी और विशाल उद्यान दिखाए गए हैं। इस सुनियोजित नगरी में अलंकृत घर, मंदिर, शांत सरयू नदी जिसमें घाटों पर पूजा-अर्चना होती दिख रही है, जीवंत बाजार और हरे-भरे बगीचे हैं, जिनमें खिले हुए कमल और मोर दिखाई देते हैं। अयोध्या की सांस्कृतिक और स्थापत्य भव्यता का उत्कृष्ट प्रदर्शन।

प्राचीन अयोध्या नगरी की भव्यता

सरयू नदी के तट पर सन्तुष्ट जनों से पूर्ण, धनधान्य से भरा पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बडा देश था। इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई नगरी अयोध्या तीनों लोकों में विख्यात थी। यह महापुरी बारह योजन (48 कोस यानी 66 मील या 106.217 किलोमीटर) चौड़ी थी। वह पुरी चारों ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्य जल छिड़का जाता और फूल बिछाये जाते थे।

इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार (प्रवेशद्वार या सिंहद्वार), सुन्दर बाजार और नगरी की रक्षा के लिये चतुर शिल्पियों द्वारा बनाये हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्त्र रखे हुए थे। उसमें सूत, मागध बंदीजन भी रहते थे। वहाँ के निवासी अतुल धन सम्पन्न थे। बड़ी-बड़ी ऊँची अटारियों वाले मकान बने हुए थे जो ध्वजा पताकाओं से शोभित थे। और परकोटे की दीवारों पर सैकड़ो तोपें चढ़ी हुई थीं।

स्त्रियों की नाट्य समितियों की भी उसमें कमी नहीं थी। और सर्वत्र जगह-जगह पार्क यानी उद्यान थे और आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ा रहे थे। नगर के चारों ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष ऐसे लगे हुए जान पड़ते मानों अयोध्या रुपिणी स्त्री करधनी पहने हो।

यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रु इन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। हाथी, घोड़े, बैल, ऊँट, खच्चर जगह-जगह देख पड़ते थे। करद राजाओं और पहलवानों का यहाँ सदा जमाव रहता था। उस पुरी में अनेक देशों के लोग व्यापारादि धंधों के लिये बसते थे।

रत्न जड़ित महलों और पर्वतों से वह पुरी शोभायमान हो रही थी। वहाँ पर स्त्रियों के क्रीड़ााग्रह बने हुए थे, जिनकी सुन्दरता देख यही जान पड़ता था मानों यह दूसरी अमरावती पुरी है। राज भवनों का सुनहरा रंग था। नगरी में सुन्दर स्वरूपवाली स्त्रियाँ रहती थीं। रत्नों के ढेर वहाँ लगे रहते थे और आकाश स्पर्शी सतखने मकान (विमान गृह) जहां देखो वहाँ दिखलाई पड़ते थे।

उसमें चौरस भूमि पर बड़े मजबूत और सघन मकान अर्थात बड़ी घनी बस्ती थी। नगरी में साठी के चावलों के ढेर लगे हुए थे और कुओं में गन्ने के रस जैसा मीठा जल भरा हुआ था। नगाडे, मृदंग, वीणा, पन स आदत काजों की ध्वनि से नगरी सदा प्रतिध्वनित हुआ करती थी। पृथ्वीतल पर तो इसकी टक्कर की दूसरी नगरी ही नहीं थी।

उस पुरी में, तप द्वारा स्वर्ग में गये हुए सिद्ध पुरुषों के विमानों जैसे सुन्दर घर बने हुए थे, जिनमें उत्तम कोटि के मनुष्य रहा करते थे। उसमें शब्दभेदी बाण चलाने वाले ऐसे भी वीर थे जो असहाय और युद्ध छोड़ कर भागने वाले शत्रु का कभी बध नहीं करते थे। वे बाण चलाने में बड़े फुर्तीले और अस्त्र-शस्त्र विद्या में पूर्ण निपुण थे।

सिंह, व्याघ्र, वराह आदि वन्य पशु जो वनों में दहाडते हुए घूमा करते थे, उनको अस्त्र-शस्त्रों से तथा उनके साथ मल्लयुद्ध करके उनको मारने वाले भी वीर इस नगरी में अनेक थे। अर्थात् हस्तलाघवता में तथा शारीरिक बल में यहाँ के वीरगण बहुत बढ़े-चढ़े थे। ऐसे हजारों महारथी अयोध्या में रहते थे।

अयोध्यापुरी में सहस्त्रों साग्निक (नित्य अग्निहोत्र करने वाले द्विज) सब प्रकार के गुणी, षडङ्ग वेदों का पारायण करने वाले विद्वान ब्राह्मण, सत्यवादी महात्मा और जप-तप में निरत हजारों ऋषि महात्मा ही मुख्यतया वास करते थे।

उस अयोध्यापुरी में वेदवेदार्थ जानने वाले, सब वस्तुओं का सत्य संग्रह करने वाले (सत्य संग्रह: धर्म का विचार रखते हुए सबका संग्रह करने वाले) सत्यप्रतिज्ञ, दूरदर्शी, महातेजस्वी, प्रजाप्रिय, इक्ष्वाकुवंश में महारथी, अनेक यज्ञ करने वाले, धर्म में रत, सबको अपने वश में रखने वाले, महर्षियों के समान राजर्षि, तीनों लोकों में प्रसिद्ध, बलवान, शत्रुरहित, सब के मित्र, इन्द्रियों को वश में रखने वाले, धनादि तथा अन्य वस्तुओं के संचय करने में इंद्र और कुबेर के समान, महाराज दशरथ ने अयोध्यापुरी में राज्य करते हुए उसी प्रकार प्रजापालन किया जिस प्रकार महाराज मनु किया करते थे।

उस श्रेष्ठ अयोध्यापुरी में सुख से बसने वाले, धर्मात्मा बहुश्रुत अर्थात् बहुत सा जमाना देखें भाले हुए, अपने-अपने धन से सन्तुष्ट, निर्लोभी, तथा सत्यवादी पुरुष रहते थे। उस उत्तम पुरी में गरीब यानी धनहीन तो कोई था ही नहीं, बल्कि कम धन वाला भी कोई न था। वहाँ जितने कुटुम्ब वाले लोग बसते थे, उन सबके पास धन-धान्य, गाय, बैले और घोड़े थे।

अयोध्यापुरी में लम्पट, कार्य, नृशंस, मूर्ख, नास्तिक आदमी तो ढूँढने पर भी नहीं मिलते थे। वहाँ पर क्या स्त्री और क्या पुरुष सब के सब धर्मात्मा और जितेन्द्रिय थे। वे अपने शुद्ध और निष्कलंक आचरणों में निष्पाप महर्षियों से टक्कर लेते थे, अर्थात् इन बातों में वे सब लोग ऋषियों के समान थे।

वहाँ ऐसा एक भी जन नहीं था जो कानों में कुण्डल, सिर पर मुकुट तथा गले में पुष्प माला धारण न करता हो और जो तेल, फुलेल, चन्दन न लगाता हो या जो हर प्रकार से सुखी न हो। ऐसा तो कोई न था जिसके (स्वच्छता न रहने के कारण) शरीर से बदबू निकलती हो। वहाँ ऐसा कोई न था जो अशुद्ध अन्न खाता हो या अच्छे पदार्थ न खाता हो या जो भूखे को अन्न न देता हो या जिसके गले और हाथों में सोने के गहने ने हों या जिसने अपने मन को न जीत रखा हो।

अयोध्या में न तो कोई पुरुष ऐसा ही था जिसे अग्निहोत्र बलिवैश्वदेव करना चाहिए और न करता हो या जो क्षुद्रचेता यानी नीच स्वभाव का हो या चोर हो या वर्णसंकर हो। वहाँ पर तो अपने वर्णाश्रम धर्मों का नित्य अनुष्ठान करने वाले, जितेन्द्रिय, दान और अध्ययनशील तथा प्रतिग्रह लेने में हिचकने वाले ब्राह्मण बसते थे।

अयोध्या में न कोई नास्तिक, असत्यवादी, अल्प अनुभवी, परनिन्दाप्रिय, अशक्त, अशिक्षित मूर्ख ही था। कोई ऐसा द्विज न था जो नित्य षडङ्गवेद का स्वाध्याय न करता हो, या जो एकादशी आदि व्रतों को न रखता हो, या जो पढ़ाने में कोताई करता हो या दीन, पागल, व्यथित अथवा दुखिया हो।

वहाँ के क्षत्रियगण ब्राह्मणों के आज्ञाकारी, वैश्यगण क्षत्रियों के अनुवर्ती (अर्थात् कहने में चलने वाले) और शूद्रगण अपने वर्ण धर्मानुसार ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य जाति के लोगों की सेवा करने वाले थे। महाराज दशरथ उसी प्रकार अयोध्यापुरी का पालन किया करते थे जिस प्रकार उनके पूर्वज बुद्धिमान नरेन्द्र महाराज मनु कर चुके थे।

अग्नि के समान तेजस्वी, सरलचित्त, शत्रु बल को न सहने वाले, अस्त्र-शस्त्र परिचालन में निपुण योद्धाओं से अयोध्यापुरी उसी प्रकार भरी हुई थी, जिस प्रकार पर्वत कन्दराएं सिंहों से भरी होती हैं। इन्द्र के घोडों के समान कम्बोज, वानायुज और सिन्धु नदी के समीपवर्ती देशों में उत्पन्न हुए घोड़ों की जाति के उत्तमोत्तम घोड़ों से अयोध्यापुरी सुशोभित थी।

विन्ध्याचल और हिमालय पर्वतों में उत्पन्न मदमस्त अति बलशाली तथा ऊँचे और महापद्म कुल वाले भद्र, मन्द्र और मृग जाति वाले और इन तीनों जातियों के मिश्रित लक्षणयुक्त भद्रमन्द, भद्रमृग और मृगमन्द्र इन दो-दो जातियों के मिश्रित लक्षण युक्त, पर्वताकार हाथियों से भरी, दो योजन वाली. अपने नाम को सार्थक करने वाली अयोध्यापुरी थी।

इस प्रकार की अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ रहकर राज्य करते थे। उस पुरी में महाराज दशरथ राज्य करते हुए उसी प्रकार शोभायमान होते थे, जिस प्रकार नक्षत्रों के बीच में चन्द्रमा। अपने नाम को चरितार्थ करने वाली अयोध्यापुरी में, जो दृढ़ तोरण अर्गलदि से युक्त थी, जिसमें चित्र विचित्र घर बने हुए थे और जिसमें हजारों धनी मनुष्य वास करते थे, महाराज दशरथ इन्द्र की तरह राज्य करते थे।

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