हनुमान आरती (Hanuman ji ki aarti) छवि जिसमें भगवान हनुमान की गदा धारण किए हुए भक्तिमय मुद्रा में रंगीन छवि और चारों ओर सजावटी मंडला डिज़ाइन दिख रहे हैं।

हनुमान जी की आरती – आरती कीजै हनुमान लला की

हनुमान जी की आरती के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं, जो अवधी भाषा में लिखी गयी है। इसमें उन्होंने भगवान के गुणों का वर्णन किया है। माना जाता है, जो भी तुलसीदास कृत इस आरती को पढ़ता है उसे हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। रचयिता तुलसीदास भाषा अवधी हनुमान जी की आरती (Hanuman […]

दुर्गा आरती (Durga Aarti) छवि जिसमें मां दुर्गा की आकृति, एक जलता हुआ दीपक और गेंदे के फूलों की माला शामिल है।

माँ दुर्गा आरती – जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

दुर्गा आरती के रचयिता शिवानन्द स्वामी थे। यह आरती अक्सर देवी दुर्गा की पूजा के दौरान गाई जाती है। खासकर नवरात्रि के त्योहार में अम्बे, काली और पार्वती सहित उनके विभिन्न रूपों की पूजा और आरती की जाती है। रचयिता देवीदास भाषा हिंदी माँ दुर्गा आरती (Ma Durga Aarti) जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा

भगवान शिव आशीर्वाद मुद्रा में बाघ की खाल पर शांत भाव के साथ बैठे हैं, उनके पास त्रिशूल है और नंदी (बैल), चंद्रमा और शिवलिंग जैसे प्रतीकात्मक तत्वों से घिरे हुए हैं। पृष्ठभूमि चमकीले पीले रंग की है, और नीचे मोटे अक्षरों में शिव आरती (Shiv ji ki aarti): ॐ जय शिव ओंकारा लिखा हुआ है।

शिव जी की आरती – ॐ जय शिव ओंकारा

शिव जी की आरती: ॐ जय शिव ओंकारा की रचना पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी ने की थी। यह आरती अक्सर धार्मिक समारोहों, खासकर शाम की प्रार्थना (संध्या आरती) और महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों के दौरान गाई जाती है। रचयिता पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी भाषा हिंदी शिव जी की आरती (Shiv ji ki Aarti) ॐ जय शिव ओंकारा,

श्री गणेश की भव्य चित्रकारी जिसमें वे पीले और नारंगी वस्त्र पहने, मोदक और आशीर्वाद मुद्रा में सिंहासन पर विराजमान हैं। नीचे 'गणेश जी की आरती (Ganesh ji ki Aarti): जय गणेश देवा' लाल पृष्ठभूमि और दीपकों के साथ लिखा हुआ है।

गणेश जी की आरती (Ganesh ji ki Aarti) – जय गणेश जय गणेश देवा

प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आरती (Ganesh ji ki Aarti) – ‘जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा’ गणेश जी की आरती जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी।माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥ पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥