जग जननी जय जय आरती माँ जगत जननी अर्थात् ‘ब्रह्मांड की माँ’ ‘देवी दुर्गा’ को समर्पित है। आरती में माँ को ब्रह्माण्ड की एकमात्र शक्ति के रूप में दर्शाया गया है। उन्हीं को सृजनकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता कहा गया है। वे ही इस प्रक्रति के मूल में हैं और राम, कृष्ण, सीता और बृजरानी राधा भी हैं। संसार के सभी रूप उनके हैं। वे ही इस संसार की अभेद शक्ति और अत्यन्त करणामयी हैं और हम आपके बालक हैं इसीलिए हमें अपनी शरण में लीजिए।
माँ जग जननी जय जय आरती (Maa Jag Janani Jai Jai Aarti Hindi)
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय।
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥
जगजननी…
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
जगजननी…
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥
जगजननी…
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
जगजननी…
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वांछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
जगजननी…
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
जगजननी…
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥
जगजननी..
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥
जगजननी…
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
जगजननी…
मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥
जगजननी…
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥
जगजननी…
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
है कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
जगजननी…
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
मां जगजननी…
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